बुधवार, 18 जनवरी 2017

तंवर वंश की कुलदेवी चिलाय माताजी

तँवर वँश की कुलदेवी चिलाय माताजी

तु संगती तंवरा तणी चावी मात चिलाय!
म्हैर करी अत मातथूं दिल्ली राज दिलाय!!
तँवर वँश की कुलदेवी चिलाय माता है। इतिहास में तँवरो की कुलदेवी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे चिलाय माता, जोग माया (योग माया), योगेश्वरी (जोगेश्वरी), सरूण्ड माता, मन्सादेवी आदि।
दिल्ली के इतिहास में तँवरो की कुलदेवी का नाम योग माया मिलता है, तंवरो के पुर्वज पांडवो ने भगवान कृष्ण की बहन को कुलदेवी मानकर इन्द्रप्रस्थ में कुलदेवी का मंदिर बनवाया और उसी स्थान पर दिल्ली के संस्थापक राजा अनंगपाल प्रथम ने पुनः योगमाया के मंदिर का निर्माण करवाया।
इसी मंदिर के कारण तवरो की राजधानी को योगिनीपुर भी कहा गया, जो महरौली के पास स्थित है।
तोमरों की अन्य शाखा और ग्वालियर के इतिहास में तँवरो की कुलदेवी का नाम योगेश्वरी ओर जोगेश्वरी भी मिलता है। एसा माना जाता है कि योगमाया( जोग माया) को ही बाद में योगेश्वरी, जोगेश्वरी बोलने लग गये।
तोरावाटी के तंवर कुलदेवी के रूप में सरूण्ड माता को पुजते है।पाटन के इतिहास मे पाटन के राजा राव भोपाजी तँवर द्वारा कोटपुतली के पास कुलदेवी का मंदिर बनवाने का विवरण मिलता है जहाँ पहले अग्यातवास के दोरान पांडवो ने योगमाया का मंदिर बनाया था।
यह मंदिर अरावली श्रंखला की पहाड़ी पर स्थित है ! मंदिर परिसर मैं उपलब्ध शिलालेख के आधार पर 650 फुट ऊँचा मंदिर एक छत्री(चबूतरा)मैं स्थित है! इस छत्री के चार दरवाजे है उसके अन्दर माता जी विराजमान है! छत्री के बाद का मंदिर 7 भवनों वाला है! मंदिर का मुख्या मार्ग दक्षिण मैं व माता का नीज मंदिर का द्वार पश्चिम मैं हैं! इस मंदिर मैं माता का 8 भुजावाला आदमकद स्वरुप स्थित है! स्थम्भो व दीवारो पर वाम मार्गियों व तांत्रिको की मूर्तियाँ की मोजुदगी इनका प्रभाव दर्शाती है! मदिर मैं माता को पांडवो द्वारा सतापित के साक्ष्य छत्री मैं स्थित हैं! मदिर की परिक्रमा मैं चामुंडा की मूर्ति है जो आज भीसुरापान करती है! मंदिर की छत्री मैं जो लाल पत्थर है वो 5 टन का है! मंदिर पीली मिट्टी से बना हुआ है पर कई से भी चूता नहीं है! मंदिर तक पहुचने के लिए 282 सीढियाँ है! इनके मध्य मैं माता की पवन चरण के निशान हैं! यहाँ 52 भेरव व 64 योग्नियाँ है ! सरुन्द देवी की पहाड़ी से सोता नदी बहती है जिसके पास एशिया प्रसिद्ध बावड़ी है जो बिना चुने सीमेन्ट से बनी हुए है ! यह दवापर युग मैं पाङ्वो द्वारा 2500 चट्टानों से बनाई गई थी।
योग माया का मंदिर सरूण्ड गांव में स्थित होने से इसे सरूण्ड माता भी बोलते हैं।
तंवरो के बडवाजी(जागाजी) के अनुसार तंवरो की कुलदेवी चिलाय माता है।
जाटू तंवरो ओर बडवो की बही के अनुसार तँवरो की कुलदेवी ने चिल पक्षी का रूप धारण कर राव धोतजी के पुत्र जयरथजी के पुत्र जाटू सिंहजी की बाल अवस्था में रक्षा की थी जिसके कारण माँ जोगमाया को चिलाय माता बोलने लगे।
इतिहास कारो के अनुसार कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी के होने कारण यह चिल, चिलाय माता कहलाई। राजस्थान के तंवर चिलाय माता कोही कुलदेवी मानते हैं। लेकिन चिलाय माता के नाम से कोई भी पुराना मंदिर नहीं मिलता है।
दो मदिरो का विवरण मिलता है जो चिलाय माता के मदिर है। जाटू तंवर और पाटन का इतिहास पढने पर पता चलता है कि 12 वी सताब्दी मे जाटू तंवरो ने खुडाना में चिलाय माता का मंदिर बनाया था ओर माता द्वारा मन्सा पुर्ण करने के कारण आज उसे मन्सादेवी के नाम से जानते हैं।
एक और मदिर का विवरण मिलता है जो पाटन के राजाओ ने 14 वी शताब्दी में गुडगाँव मे चिलाय माता का मंदिर बनवाया और ब्राह्मणों को माता की सेवा के लिए नियुक्त किया। लेकिन 17 वी शताब्दी के बाद पाटन के राजा द्वारा माता के लिए सेवा जानी बन्द हो गयी ओर आज स्थानीय लोग चिलाय माता को शीतला माता समझ कर शीतला माता के रूप में पुजते है।
विभिन्न स्त्रोतों और पांडवो या तंवरो द्वारा बनवाये गये मंदिर से यही प्रतीत होता है कि तोमर (तँवर) की कुलदेवी माँ योगमाया है जो बाद में योगेश्वरी कहलाई। माता का वाहन चिल पक्षी होने के कारण और कुलदेवी ने चिल का रूप धारण कर जाटू सिंहजी की बाल अवस्था में रक्षा की थी जिसके कारण यह आज चिलाय माता के नाम से जानी जाती है।

जय माँ बायण
जय माँ चिलाय

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